चंडीगढ़, 11 अक्टूबर 2025: चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा हाल ही में घोषित “लिटिगेशन पॉलिसी” का उद्देश्य यदि सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह अनावश्यक कानूनी मुकदमों से कर्मचारियों और प्रशासन दोनों को राहत प्रदान कर सकती है यह कहना है ऑल कांट्रैक्चुअल कर्मचारी संघ भारत (रजि०), यूटी चंडीगढ़ के प्रधान अशोक कुमार का ।
उन्होंने कहा कि लेकिन यह भी चिंता का विषय है कि क्या यह नीति उन मामलों पर भी लागू की जाएगी, जिनमें वर्षों से कार्यरत कांट्रैक्ट कर्मचारी नियमितीकरण की मांग को लेकर कोर्ट में गए हैं।
अशोक कुमार ने बताया कि चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा केंद्र सरकार के नियम लागू करने की आड़ में वर्षों से सेवा दे रहे कांट्रैक्ट और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है। उन्होंने जानकारी दी कि पिछले 25-30 वर्षों में पंजाब रूल्स के तहत, प्रशासन और नगर निगम में करीब 5000 कांट्रैक्ट व 15000-20000 आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती की गई है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014-15 में डेली वेज और वर्क चार्ज कर्मचारियों के लिए दस वर्षों की सेवा पर नियमितीकरण की नीति बनाई गई थी, लेकिन दुर्भाग्यवश कांट्रैक्ट कर्मचारियों को इससे वंचित रखा गया।
अशोक कुमार ने यह भी जिक्र किया कि पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 2011 में बनाई गई तीन वर्ष की सेवा के बाद नियमितीकरण की नीति को चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा लागू किया जा सकता था, लेकिन प्रशासन की निर्णय लेने की अक्षमता के चलते ऐसा नहीं किया गया।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2010 में स्पोर्ट्स कोचों और असिस्टेंट मेडिकल ऑफिसरों की, तथा 2017 में डीपीआर विभाग में कार्यरत ड्राइवर की सेवाएं कैट के आदेशों के बाद नियमित की गईं। वहीं, वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर पार्ट-टाइम असिस्टेंट प्रोफेसरों की सेवाएं भी नियमित की गईं।
अशोक कुमार ने आरोप लगाया कि प्रशासन द्वारा “पिक एंड चूज़” नीति अपनाई जा रही है, जिससे बाकी कर्मचारियों में असुरक्षा बढ़ रही है और सुरक्षित नीति के अभाव में उन्हें मजबूरी में कोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा है।
उन्होंने बताया कि हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा नगर निगम में कार्यरत जेई और तकनीकी शिक्षा विभाग में लैब तकनीशियन की सेवाएं नियमित करने के आदेश दिए गए हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के जग्गो, श्रीपाल और धर्म सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस पर आधारित हैं।
अशोक कुमार ने यह मांग की कि यदि प्रशासन कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए दस साल की सेवा पूरी करने वाले सभी कांट्रैक्ट कर्मचारियों को नियमित करता है, तो वास्तव में “लिटिगेशन पॉलिसी” का उद्देश्य सफल हो सकता है।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अफसरशाही की ओर से निर्णय नहीं लिया गया, तो अन्य कर्मचारी भी “फोर्सफुल लिटिगेशन” के लिए विवश हो जाएंगे।
अंत में ऑल कांट्रैक्चुअल कर्मचारी संघ भारत ने चंडीगढ़ प्रशासन से अपील करते हुए कहा कि वर्षों से सेवा दे रहे कांट्रैक्ट कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और प्रशासन व कर्मचारियों दोनों को अनावश्यक मुकदमों से राहत दी जाए।
उन्होंने कहा कि कांट्रैक्ट कर्मचारियों के मन में अब भी यह सवाल गूंजता रहता है कि —
“क्या फिर एक बार अफसरशाही की निर्णयहीनता के कारण हमें अदालतों का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा?”
