कुंडल पर्वत (महाराष्ट्र) के जैन तीर्थ पर मूर्ति खंडन का प्रयास – जैन समाज में गहरा आक्रोश

 

कुंडल पर्वत, महाराष्ट्र:
जैन धर्म के ऐतिहासिक और पवित्र तीर्थ स्थल कुंंडल पर्वत पर हाल ही में एक निंदनीय घटना सामने आई है, जहाँ अज्ञात असामाजिक तत्वों ने भगवान पार्श्वनाथ एवं यक्षिणी देवी पद्मावती की प्राचीन प्रतिमाओं को खंडित करने का प्रयास किया।

प्रसिद्ध जैन स्थल कुंडल पर्वत वह स्थान है जहाँ पर भगवान श्री पार्श्वनाथ और भगवान श्री महावीर स्वामी जी का साक्षात समोसरण आया एवं तीर्थंकर महावीर स्वामी के अंतिम गणधर श्री श्रीधर केवली जी ने मोक्ष प्राप्त किया था। इस पावन पर्वत पर उनके चरण चिन्ह आज भी स्थापित हैं और साथ ही चिंतामणि श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान और यक्षिणी पद्मावती माता की दिव्य प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं।

हाल ही में लिए गए चित्रों में यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि पार्श्वनाथ भगवान और यक्षिणी माता की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया। मूर्तियों पर खरोंच और चोट के निशान स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। यह दृश्य न केवल भावनात्मक रूप से पीड़ादायक है, बल्कि जैन समाज की आस्था पर सीधा प्रहार है।
उल्लेखनीय है कि जैन धर्मावलंबियों ने सदैव अहिंसा और सहिष्णुता का पालन करते हुए किसी भी अन्य धर्म स्थल या प्रतिमा को हानि नहीं पहुंचाई है, फिर क्यों अन्य मतानुयायी जैन समाज की भावनाओं पर निरंतर आघात करते रहते हैं?

जैसे ही यह समाचार श्रुताराधक संत क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव को प्राप्त हुआ, वे तुरंत तीर्थ स्थल पर पहुंचे। उन्होंने समाज को सम्बोधित करते हुए प्रशासन से मांग की, कि इस अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक स्थल पर सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की जाए।

गुरुदेव का यह स्पष्ट संदेश है कि ‘हमें नए मंदिरों के निर्माण में अपनी ऊर्जा और संसाधन लगाने के साथ-साथ अपने प्राचीन तीर्थों की रक्षा के लिए एकजुट होकर प्रयास करने चाहिए। ना की भीड़ में भेड़ बनना चाहिए।’

जैन समाज की माँग:
* प्रशासन इस गंभीर अपराध के दोषियों की जल्द से जल्द पहचान करे एवं उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाए।
* तीर्थ स्थल पर सुरक्षा गार्ड एवं CCTV की स्थायी व्यवस्था हो।
* केंद्र एवं राज्य सरकार इस तीर्थ को “संरक्षित धार्मिक स्थल” घोषित करे।

यह घटना न केवल जैन समाज, बल्कि संपूर्ण देश की धार्मिक सहिष्णुता के लिए एक चुनौती है।

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