हिमाचल का कर्ज संकट: उधार की राशि, बोझिल भविष्य

Chandigarh

वित्तीय कुप्रबंधन की गंभीर तस्वीर पेश करते हुए, हिमाचल प्रदेश सरकार को दिसंबर के वेतन और पेंशन के भुगतान के लिए ₹500 करोड़ के एक और अग्रिम ऋण का सहारा लेना पड़ा है। नियमित खर्चों के लिए बार-बार उधार लेने की यह प्रवृत्ति राज्य को कर्ज के दलदल में धकेल रही है। सालाना ₹6,200 करोड़ की उधारी सीमा पहले ही समाप्त हो चुकी है, और अब लिया गया यह ऋण भविष्य में करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ डाल रहा है।

खतरनाक निर्भरता

हिमाचल प्रदेश का कर्ज ₹85,000 करोड़ तक पहुंच गया है, और यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। राज्य की रोजमर्रा की जरूरतों के लिए ऋण और केंद्र की सहायता पर निर्भरता चिंताजनक है। जब एक सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन जैसे बुनियादी खर्चों को पूरा करने के लिए ऋण पर निर्भर हो जाए, तो यह एक असफल वित्तीय प्रणाली की ओर इशारा करता है, जहां भविष्य को गिरवी रखकर वर्तमान को चलाया जा रहा है।

आर्थिक वर्ष 2025-26 के लिए स्थिति और भी खराब होने वाली है।

केंद्र सरकार से मिलने वाला राजस्व घाटा अनुदान (RDG), जो अभी ₹6,258 करोड़ है, घटकर ₹3,257 करोड़ रह जाएगा। राजस्व बढ़ाने के सीमित साधनों के कारण, यह अंतर और बढ़ेगा, जिससे या तो और उधारी लेनी होगी या फिर करों में वृद्धि करनी होगी, और दोनों ही स्थितियां आम नागरिकों पर बोझ डालती हैं।

गलत प्राथमिकताएं और लोकलुभावन नीतियां

इस संकट की जड़ में सरकारों की अल्पकालिक, वोट-केंद्रित नीतियां हैं। उद्योग, बुनियादी ढांचे और सतत विकास में निवेश करने की बजाय, करदाताओं के पैसे को लोकलुभावन योजनाओं और सब्सिडी में खर्च किया जा रहा है। यह नीति न केवल राज्य की वित्तीय स्थिति को कमजोर करती है, बल्कि आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के निर्माण में भी विफल होती है।

हिमाचल प्रदेश अब इस वित्तीय लापरवाही का जोखिम नहीं उठा सकता। बिना वित्तीय स्थिरता के लोकलुभावन नीतियां आम नागरिकों पर भारी पड़ रही हैं, जिससे वे अधिक कर और घटती सेवाओं का सामना कर रहे हैं।

समाधान की दिशा में कदम

इस चक्र को तोड़ने के लिए सरकार को जिम्मेदार वित्तीय नीतियों को अपनाना होगा और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। कुछ तत्काल कदम इस प्रकार हैं:
1. राजस्व के स्रोतों में विविधता लाएं:
• स्थायी पर्यटन, बागवानी, कृषि प्रसंस्करण और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश करें।
• आईटी हब और पर्यावरण-अनुकूल उद्योगों को बढ़ावा दें।
2. अनावश्यक खर्चों में कटौती करें:
• अनावश्यक भत्तों और राजनीतिक लाभ के लिए चलाई जा रही योजनाओं को खत्म करें।
• स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसी जरूरी सेवाओं को प्राथमिकता दें।
3. बुनियादी ढांचे को मजबूत करें:
• सड़कों, डिजिटल कनेक्टिविटी और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार करें ताकि व्यवसायों और निवेश को आकर्षित किया जा सके।
4. कर अनुपालन में सुधार करें:
• ईमानदार करदाताओं पर बोझ बढ़ाए बिना जीएसटी संग्रह में सुधार करें।
5. पारदर्शी शासन लागू करें:
• सख्त भ्रष्टाचार-रोधी उपाय करें और सरकारी खर्च में पारदर्शिता सुनिश्चित करें।

जिम्मेदार शासन की जरूरत

हिमाचल प्रदेश के लोग बेहतर के हकदार हैं — एक ऐसी सरकार जो अल्पकालिक लाभ से ऊपर उठकर दीर्घकालिक समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करे। वित्तीय अनुशासन, ईमानदार प्रशासन और सतत विकास नीतियां समय की मांग हैं। यदि तुरंत सुधार नहीं किए गए, तो राज्य आने वाली पीढ़ियों को भारी वित्तीय बोझ सौंप देगा।

अब सरकार को लोकलुभावन नीतियों से ऊपर उठकर सच्चे विकास की राह पर चलना होगा। समय तेजी से निकल रहा है, और लगातार वित्तीय लापरवाही राज्य के भविष्य को अपंग बना देगी।

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