भगवान श्री परशुराम भवन सेक्टर 12 ए पंचकुला में आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद भागवत कथा के प्रथम दिवस में सुप्रसिद्ध कथावाचक सद्भावना दूत भागवताचार्य डा रमनीक कृष्ण जी महाराज ने महात्म्य का वर्णन करते हुए बताया के भक्ति महारानी विनम्रता के सिंहासन पर आरूढ़ होकर ही जीवन में उतरती है। ज्ञान और वैराग्य उसी के जीवन में पुष्ट हो सकते हैं जिसने जीवन के भक्ति को सहज स्वरूप में आत्मसात किया हो। श्री नारद जी महाराज ने भक्ति महारानी के दुख के निवारण के लिए सनक आदि ऋषियों के चरणों में प्रार्थना की। ऋषियों ने श्रीमदभागवत को ज्ञान वैराग्य को पुष्ट करने का श्रेष्ठ मार्ग बताया। गंगा के तट पर आनंद घाट के किनारे भागवत जी का वाचन सनक, सनंदन, सनातन एवम सनत कुमार ऋषियों ने किया। ज्ञान वैराग्य पुनः यौवन अवस्था को प्राप्त हुए। भक्ति महारानी ने अपने लिए जब भगवान से स्थान मांगा। तब भगवान ने अनुमोदन करते हुए कहा के ना मैं वैकुंठ में निवास करता हूं, ना मैं योगियों के हृदय में वास करता हूं, मेरे भक्त जहां एकत्रित होकर मेरे नाम का संकीर्तन करते हैं मैं उनके मध्य में आकर विराजमान हो जाता हूं। यही मेरी प्रतिज्ञा है। आज कथा से पूर्व भागवत जी की मंगल।कलश यात्रा निकाली गई जिसमे 108 मातृ शक्ति ने अपने शीश पर कलश धारण कर पग पग चलकर पुण्य लाभ अर्जित किया। कलश यात्रा में सभा के समस्त सभासद उपाध्यक्ष मुकुंद लाल बख्शी, महासचिव विकास कौशिक, कैशियर जी सी कौशिक, सयुक्त सचिव राजेश वत्स, धनश्याम शर्मा, वीरेंद्र शर्मा, एन डी शर्मा, हरज्ञान शर्मा,वीरेंद्र शर्मा, विजेंदर शर्मा, श्याम लाल शास्त्री एवम भारी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे।सभा के प्रधान श्री एम पी शर्मा ने बताया के यह कथा आगामी 27 दिसंबर तक आयोजित की जाएगी।
गंगा के तट पर आनंद घाट के किनारे भागवत जी का वाचन सनक, सनंदन, सनातन एवम सनत कुमार ऋषियों ने किया
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