महाभारतकालीन खेल चौसर को फिर से आमजन में लोकप्रिय व प्रचलित करने का मिशन शुरू
चण्डीगढ़ : चण्डीगढ़ पचीसी खेल संघ, जोकि राष्ट्रीय खेल संस्था पचीसी गेम फेडरेशन के साथ सम्बन्ध है, ने महाभारतकालीन खेल चौसर को फिर से आमजन में लोकप्रिय व प्रचलित करने का मिशन शुरू किया है। संस्था के महासचिव खुशहाल सिंह ने बताया कि इसके तहत चण्डीगढ़ पचीसी खेल संघ द्वारा इस खेल के रूल्स एन्ड रेग्युलेशंस पर एक कार्यशाला आयोजित की गई। ये कार्यक्रम पचीसी खेल महासंघ (भारत की राष्ट्रीय संस्था) के तत्वाधान में आयोजित किया गया जो एशियाई पचीसी महासंघ और अंतर्राष्ट्रीय पचीसी महासंघ के साथ संबद्ध है। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में ट्राईसिटी के सभी शारीरिक शिक्षा शिक्षकों, अधिकारियों, सदस्यों, स्वयंसेवकों को भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया जिन्होंने अच्छा रिस्पांस दिया तथा कुल 37 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यशाला के दौरान डॉ. जीपी पाल, महासचिव भी उपस्थित रहे। प्रतिभागियों ने पूरे उत्साह के साथ पचीसी खेल के नियमों को सीखने में रुचि दिखाई। सभी ने इस नए इनडोर गेम को खेलते हुए आनंद महसूस किया।
चौसर या चोपड पासा खेल के बारे में जानकारी दी डॉ. जीपी पाल ने
डॉ. जीपी पाल ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए बताया कि सोशल मीडिया और वीडियो गेम के जमाने में हम आज अपने परम्परागत खेलों को शायद भूल गये हैं। मगर आज भी हमारे ग्रामीण क्षेत्रों ने कई पुराने खेलों को सहेज कर रखा है। इन खेलों में से एक है, चौसर जोकि हमारे देश के सबसे प्राचीन खेलों में से एक है। यह खेल बिसात पर चार रंगों की चार-चार गोटियों और तीन पासों से खेला जाता है।
भगवान शिव और माता पार्वती चौसर का खेल खेलते थे
पौराणिक हिन्दू ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव और माता पार्वती चौसर का खेल खेलते थे। यह खेल वे अपने दांपत्य जीवन की सहजता और मनोरंजन के लिए खेलते थे। भगवान भोलेनाथ को तो चौसर खेल में विशेष रुचि थी। महादेव के चौसर के प्रति लगाव को देखते हुए आज भी मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शयन आरती के पूर्व भगवान के विश्राम के लिए सिर्फ सेज ही नहीं सजती, चौसर भी बिछती है। आपको बता दें कि हर ज्योतिर्लिंग की अपनी अलग विशेषता है। जहां उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर की भस्म आरती का महत्त्व है, उसी तरह औंकारेश्वर की शयन आरती विशेष महत्ता रखती है।
महाभारत के युद्ध की एक वजह चौसर भी था
खुशहाल सिंह ने बताया कि यही साधारण सा मनोरंजक खेल महाभारत में द्रौपदी के चीर-हरण की वजह बन गया था। शकुनि ने पांडवों को चौसर के खेल के लिए आमंत्रित किया. शकुनि चौसर का बहुत कुटिल खिलाड़ी था, उसने धीरे-धीरे युधिष्ठिर को एक-एक करके सभी चीज़ें दांव पर लगाने को मजबूर कर दिया। आखिर में युधिष्ठिर द्रौपदी को भी हार गया। उसी दिन से महाभारत के युद्ध की नींव पड़ गई थी।