उच्च शिक्षा विभाग द्वारा कैट और उच्च न्यायालय के आदेशों की अनदेखी और अवहेलना- कांटरैकचुआल संघ

चंडीगढ़

कैट और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के कई स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, उच्च शिक्षा विभाग कानूनी रूप से बाध्यकारी आदेशों की अवहेलना कर रहा है, जिससे चंडीगढ़ में संविदा सहायक प्रोफेसर अनिश्चितता की स्थिति में हैं।

इन निर्णयों को लागू करने में देरी न्यायिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन है और एक दशक से अधिक समय से सेवा दे रहे संकाय सदस्यों के साथ अन्याय है।

कानूनी समयरेखा और न्यायालय के निर्देश

* 2010: उच्च शिक्षा विभाग ने अतिरिक्त स्वीकृत पदों पर 289 संविदा व्याख्याताओं की नियुक्ति की।

* 2011: कानूनी याचिकाओं के जवाब में, कैट ने संविदा व्याख्याताओं (वंदना जैन – ओए नंबर 33, शालिनी वाधवा – ओए नंबर 36) के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें नियमित नियुक्तियों तक सेवाएं जारी रखने का निर्देश दिया गया ताकि उन्हें नियमित व्याख्याताओं के अनुसार मूल वेतन और डीए का भुगतान किया जा सके।

* 2016: उच्च न्यायालय ने इस निर्णय की पुष्टि की, तथा 5वें वेतन आयोग के तहत 2010 से बकाया राशि जारी करने का निर्देश दिया।

* 2018: स्वीकृत, अतिरिक्त स्वीकृत, गैर-स्वीकृत तथा स्व-वित्तपोषित पदों के बीच अंतर के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय में दायर एक प्रश्न पर शिक्षा विभाग ने स्पष्ट रूप से यह रुख अपनाया था कि इन नियुक्तियों में कोई अंतर नहीं है तथा उनके साथ समान व्यवहार किया जाता है।

* 2023: चंडीगढ़ के एआईसीटीई से संबद्ध कला महाविद्यालयों के शिक्षकों ने 2016 से 7वें वेतनमान + बकाया राशि के लिए कैट के निर्णय में जीत हासिल की, लेकिन बकाया राशि जारी नहीं की गई।

* 2024: एआईसीटीई शिक्षकों ने विभाग के गैर-अनुपालन के खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर की, जो लंबित है।

* 31.08.2024: हाईकोर्ट ने सहायक प्रोफेसरों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें उनके मूल वेतन + डीए के अधिकार, 15-20 साल के अनुभव वाले लोगों के लिए सेवाओं के नियमितीकरण और 7वें सीपीसी वेतनमान कार्यान्वयन की पुष्टि की गई।

चंडीगढ़ प्रशासन ने इन फैसलों का पालन करने के बजाय इन फैसलों को दरकिनार करने के लिए कदम उठाए हैं।

04.03.2024 को चंडीगढ़ के कार्मिक विभाग ने वेतन निधि के तहत संविदा कर्मचारियों को सीधे अनुबंध पदों पर स्थानांतरित करने की नीति पेश की, जिससे स्वीकृत पदों को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया गया और नियमितीकरण से बचा गया। 2023-2024 में सरकारी कला और विज्ञान कॉलेजों के सहायक प्रोफेसरों ने एआईसीटीई के फैसले का हवाला देते हुए 7वें सीपीसी वेतन समानता के लिए कैट से संपर्क किया। कैट ने शिक्षा सचिव द्वारा जारी 14.02.2025 के ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ के आधार पर मामले को खारिज कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट के 31.08.2024 के फैसले को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।

उच्च न्यायालय द्वारा सीडब्ल्यूपी संख्या 12069/2015 यूपीएससी बनाम सुनीता शर्मा के मामले में दिए गए निर्णय में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना था कि इन संविदा कर्मचारियों को सार्वजनिक विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित करने के बाद नियुक्त किया गया था, वे यूजीसी योग्यता के अनुसार योग्य थे।

इसलिए उनकी नियुक्ति को पिछले दरवाजे से प्रवेश नहीं माना जा सकता है, साथ ही उन्हें सरकार के निर्देशानुसार आयु में छूट देने के बाद नियमित नियुक्ति के रूप में उनके मामलों पर विचार करने का निर्देश दिया गया था। शिक्षा और उच्च शिक्षा के 100 से अधिक मामले कैट, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं, क्योंकि चंडीगढ़ का उच्च शिक्षा विभाग न्याय में देरी कर रहा है, जबकि पड़ोसी राज्य पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने पहले ही हजारों संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया है।

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