चंडीगढ़
सेक्टर 17 स्थित सर्कस ग्राउंड में लगे तिब्बत पोटाला बाजार की आज से शुरुआत हो गई है। जिसका चंडीगढ़ नगर निगम कमिश्नर अमित कुमार ने रिबन काट कर बाजार का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर चंडीगढ़ नगर निगम पार्षद प्रेम लता सहित सुरेश कपिला और तिब्बत पोटाला बाजार के प्रबंधन सदस्य व दुकानदार मौजूद थे।
तिब्बत समुदाय ने इस अवसर पर नगर निगम कमिश्नर अमित कुमार का धन्यवाद करते हुए प्रतिवर्ष बाजार लगाने में आ रही विभिन्न समस्याओं से अवगत करवाया। समस्यायों में प्रतिदिन लग रहा रेंट ही बेहद ही ज्यादा है। साथ ही लगभग 2 महीने चलने वाले इस बाजार के लिए मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव बताया।
निगम कमिश्नर अमित कुमार ने तिब्बती समुदाय का आभार जताते हुए कहा कि बेशक तिब्बती आज भारत देश मे शरणार्थी हैं, लेकिन देश की आर्थिकता में भी यह अहम योगदान दे रहे है। उन्होंने तिब्बती परिवार के बच्चों को व्यापार में माता पिता का सहयोग देने की प्रशंसा की। लेकिन वहीं सुझाव दिया कि पढ़ाई लिखाई के प्रति भी उनमें रुझान होना चाहिए। पढ़ोगे तो ही आगे बढोगे। उन्होंने तिब्बती गर्म वस्त्रों की भी तारीफ की और कहा कि तिब्बती वस्त्रों के प्रति लोगों में अलग ही क्रेज होता है। सर्दियों में यह गर्म वस्त्र बेहद गरमाहट प्रदान करते हैं। उनकी समस्याओं को लेकर निगम कमिश्नर ने आश्वासन दिया कि वो इस दिशा में अवश्य प्रयास करेंगे ताकि उन्हें पेश आ रही समस्याओं का निवारण हो सके।
सेक्टर 17 स्थित सर्कस ग्राउंड में लगने वाले तिब्बत पोटाला बाजार का नाम सुनते ही लोग इस बाजार का रूख करते हैं। सर्दियों में शिद्दत के साथ शहर के लोग इस बाजार का इंतजार करते हैं। क्योंकि इस बाजार में लोगों को अच्छे वूलन वस्त्र कम कीमत पर मिल जाते है। इसके अलावा भी इस मार्केट की कई और खासियत है।
तिब्बत परिवारों के अनुसार वर्ष 1989 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा जी को विश्व शांति पुरस्कार मिला था। यह दिन पूरे भारत देश में यहां कहीं भी तिब्बती रहते हैं और तिब्बती परिवार रहते हैं, यह दिन बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। तो आज यहां सेक्टर 17 में तिब्बती शरणार्थी बाजार लगता है। इस दिन को बोधिसत्व मनाते हैं।तिब्बत पोटाला बाजार के प्रेसिडेंट ने बताया कि दरअसल पोटाला बाजार तिब्बत से आए शरणार्थियों के द्वारा लगाया जाता है। यहां पर सामान बेचने वाले सभी दुकानदार वैसे हैं जो तिब्बत के मूल निवासी हैं। ये भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
उन्होंने आगे बताया कि यह कपड़े हम लोग खुद से निर्मित कपड़े हैं,जो ठंड में कारगर है,जिससे ठंड का एहसास नहीं होता है। यह बिल्कुल रुई की तरह सॉफ्ट होता है और दिसंबर और जनवरी जैसे कर्कश ठंड मे भी आपको पसीने छुड़ा देगा।
उन्होंने बताया कि इस व्यापार में तिब्बत से आए कई शरणार्थी जुड़े हैं. वर्ष 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया तब उनके पूर्वजों ने भारत में शरण लिया और तब से वह भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं. भारत में आने के बाद अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने इस व्यापार की शुरुआत की, जिसमें धीरे-धीरे तिब्बत से आए सभी शरणार्थी जुड़ते चले गए
तिब्बतीयन बताते है ग्राहक को यहां उचित मूल्य पर गर्म कपड़ें मिलते हैं। तिब्बती बाजार के प्रति खरीदारों की आस्था और विश्वास बरसों से कायम है। बाजार में किसी भी तरह का मोल- मुलाई नहीं होता। फिक्स रेट पर बिकता है। गर्म कपड़ों के इस बाजार में शरणार्थी तिब्बतियों के 17 स्टॉल सजाए गए है। जो ग्रहाकों को आकर्षित करता है। यहां एक ही मार्केट में लेडीस, जेंट्स और बच्चों का सभी तरह के स्वेटर, जैकेट, मफलर,टोपी फैंसी गर्म कपड़ों का आइटम उचित मूल्य पर मिल जाता है।
हाथों से बुने हुए कपड़े होते हैं खासः एक तिब्बती दुकानदार बताती हैं कि उनका पूरा समुदाय इस व्यापार से जुड़ा रहता है और अपने घरों में भी कई तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में शरण लेने के बाद उन लोगों ने इस व्यापार को अपने जीवन यापन का साधन बनाया। इसलिए साल के 9 महीने देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर सामान इकट्ठा करते हैं और फिर उसके बाद उसे अपने कारखाने या घरों में डिजाइनदार कपड़े का रूप देते हैं। जो लोगों को खासा आकर्षित करता है। जब डिजाइनदार कपड़े बुनकर तैयार हो जाते हैं तो उन कपड़ों को व्यापारी देश के विभिन्न राज्यों में जाकर बेचते है और उससे होने वाले मुनाफे से वो अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं।