गुरुवार को दशलक्षण महापर्व का आठवाँ दिन बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। आज का दिवस “उत्तम त्याग धर्म” को समर्पित रहा।
त्याग धर्म का मूल भाव है – अपने जीवन में मोह, लोभ, आसक्ति तथा विकारों का त्याग करना। जब जीव अपने अनावश्यक उपभोग और वासनाओं का त्याग करता है, तभी वह आत्मशुद्धि और मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होता है। त्याग धर्म का पालन जीवन में शांति, संतोष और आत्मबल प्रदान करता है।
कार्यक्रम के दौरान प्रवचन, पूजन एवं सामूहिक भक्ति का आयोजन हुआ जिसमें समाज के अनेक श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ धर्मबहादुर जैन द्वारा भगवान् के प्रथम अभिषेक से हुआ। शांतिधारा का सौभाग्य नवरत्तन जैन एवं राजिंदर प्रसाद जैन (38W) के परिवार को प्राप्त हुआ।
दशलक्षण विधान में आज के पुण्यार्जक परिवार-सौधर्म इंद्र – श्रीमान रजनीश जैन(ढकोली),महायज्ञ नायक – संत कुमार जैन, श्री अशोक जैन (हल्लो माजरा),कुबेर – प्रमोद जैन (सेक्टर 20) रहे।
आज की भोजन व्यवस्था सुशील जैन (सेक्टर 20) के परिवार से थी।
आयोजन समिति की और से धर्मबहादुर जैन, एडवोकेट आदर्श जैन, संत कुमार जैन एवं समिति के अन्य पदाधिकारी एवं गणमान्यजनों की गरिमामयी उपस्थिति ने वातावरण को और मंगलमई बना दिया।
सायंकाल 6:30 बजे महाआरती से कार्यक्रमों का शुभारंभ हुआ। तत्पश्चात श्रद्धालुओं को छह ढ़ाला जैन ग्रंथ का महत्व समझाया गया। इसके उपरांत नाटिका का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में बालक-बालिकाओं ने भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।कल के फेन्सी ड्रेस प्रतियोगिता में लगभग सोलह बालक बालिकाओं ने भाग लिया जिसमे आठ महीने से तेरह साल के बच्चों ने भी भाग लिया। इन बच्चों ने जैन धर्म के कई देवी देवताओं का रूप धारण किया।
गुरुवार को दशलक्षण महापर्व का आठवाँ दिन बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। आज का दिवस “उत्तम त्याग धर्म” को समर्पित रहा।
